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Monday, August 5, 2024

बांग्लादेश से शेख हसीना को भागने के लिए इन तीन छात्रों ने किया मजबूर


बांग्लादेश में सरकार गिराने के पीछे नाहिद इस्लाम सबसे बड़ा चेहरा हैं. उन्होंने ही आंदोलन में मुख्य किरदार निभाया था. रविवार को हुए प्रोटेस्ट में उन्होंने कहा था कि हमने लाठी उठाई है, अगर लाठी काम नहीं आई तो हम हथियार उठाने के लिए भी तैयार हैं. शेख हसीना देश को गृहयुद्ध में धकेलना चाहती हैं. नाहिद ढाका यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट हैं. उन्होंने कहा कि 20 जुलाई की सुबह उन्हें पुलिस ने उठा लिया था. 24 घंटे बाद उन्हें एक पुल के नीच बेहोशी की हालत में पाया गया था. नाहिद ने दावा किया कि लोहे की छड़ से पीटा उन्हें गया था, उन्हें इतना मारा कि बेहोश कर दिया गया. हालांकि, इसको लेकर कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हुए थे. 26 जुलाई को नाहिद को अस्पताल से इलाज के दौरान दोबारा उठा लिया गया. नाहिद ने एक अखबार को बताया कि 20 जुलाई को उसे सुबह 2 बजे 25 से 30 लोग जबरन ले गए थे. पुलिस के इस रवैये और पिटाई से घायल हुए नाहिद इस्लाम ने प्रदर्शनकारियों को और भड़का दिया, जिससे लोग हिंसक हो गए.



जून में शुरू हुए आरक्षण विरोधी आंदोलन में आसिफ महमूद ने अहम भूमिका निभाई थी. ढाका यूनिवर्सिटी के छात्र के आह्वान पर आंदोलन देशव्यापी हो गया था. 26 जुलाई को डिटेक्टिव ब्रांच ने आसिफ महमूद को भी उठा लिया था. 27 जुलाई को डिटेक्टिव ब्रांच ने 2 और छात्र नेता सरजिस आलम और हसनत अब्दुल्लाह को हिरासत में लिया. उनसे परिवार को भी नहीं मिलने दिया गया. वहीं, एक वीडियो जारी हुआ, जिसमें नाहिद, आसिफ और उसके साथियों ने प्रदर्शन वापस लेने की बात कही थी. बताया गया कि यह वीडियो पुलिस ने जबरन बनवाया था. आसिफ को एक इंजेक्शन दिया गया, जिससे वह कई दिनों तक बेहोश रहा. 3 अगस्त को आसिफ ने फेसबुक पर पोस्ट करते हुए छात्रों से घर पर न रहने और नजदीकी प्रदर्शनों में शामिल होने की अपील की. इसके बाद बवाल बढ़ता चला गया.


'आरक्षण का विरोध किया तो पुलिस उठाकर ले गई

अबू बकेर मजूमदार भी ढाका यूनिवर्सिटी के छात्र हैं. 5 जून को हाई कोर्ट के आरक्षण पर दिए फैसले के बाद बकर ने दोस्तों के संग मिलकर स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन मूवमेंट की शुरुआत की. उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरी में आरक्षण का जमकर विरोध किया. अबू बेकर मजूमदार को 19 जुलाई की शाम धनमंडी इलाके से कुछ लोग अपने साथ ले गए थे, जिसके बाद कई दिनों तक कुछ भी पता नहीं चला. दो दिन बाद सड़क किनारे जहां से उठाया गया था, वहीं छोड़ दिया गया. बाद में मीडिया को अबू ने बताया कि पुलिस आंदोलन वापस लेने का दवाब बना रही थी. जब मना किया तो मारपीट की गई. इसके बाद उन्होंने प्रोटेस्ट में और जान फूंक दी थी. दरअसल, नाहिद इस्लाम, आसिफ महमूद और अबू बकर मजूमदार घायल थे और अस्पतालों में इलाज करा रहे थे. गृह मंत्री दावा कर रहे थे कि इन्होंने अपनी मर्जी से आंदोलन खत्म करने की बात कही है. जब मामला खुला तो प्रदर्शनकारी भड़क गए. प्रदर्शन इतना बढ़ गया कि हजारों लोग सड़कों पर उतर गए. आखिर में शेख हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा.

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