कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने आज लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। इस विधेयक का उद्देश्य राज्य वक्फ बोर्डों की शक्तियों, वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण और सर्वेक्षण तथा अतिक्रमण हटाने से संबंधित मुद्दों का समाधान करना है।
इस विधेयक में 1995 के वक्फ अधिनियम की 44 धाराओं में संशोधन का प्रस्ताव है। विधेयक में प्रस्ताव है कि केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में दो महिलाएं होनी चाहिए। इसमें यह भी प्रावधान है कि वक्फ बोर्ड को मिलने वाले धन का उपयोग सरकार द्वारा सुझाए गए तरीके से विधवाओं, तलाकशुदा और अनाथों के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए। एक अन्य प्रमुख प्रस्ताव यह है कि महिलाओं की विरासत को संरक्षित किया जाना चाहिए।
लोकसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल ने प्रस्तावित कानून को "कठोर" करार दिया और कहा कि यह धर्म की स्वतंत्रता और संघीय व्यवस्था पर हमला है। उन्होंने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति के प्रावधान का भी विरोध किया।
दूसरी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी ने भी विधेयक का विरोध किया है। पार्टी सांसद मोहिबुल्लाह ने कहा, "यह मुसलमानों के साथ अन्याय है। हम बहुत बड़ी गलती करने जा रहे हैं, इस विधेयक की वजह से हमें सदियों तक तकलीफ होगी। यह धर्म के साथ हस्तक्षेप है।" इससे पहले पार्टी प्रमुख और सांसद अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि भाजपा संशोधन की आड़ में वक्फ बोर्ड की जमीनों को बेचना चाहती है। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "वक्फ बोर्ड के ये सभी संशोधन सिर्फ बहाना हैं। रक्षा, रेलवे और नजूल की जमीनों को बेचना ही लक्ष्य है।" तृणमूल के सुदीप बंद्योपाध्याय ने कहा कि यह विधेयक संघवाद के खिलाफ है, जबकि डीएमके की के कनिमोझी ने कहा कि यह अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ है। उन्होंने पूछा, "क्या ईसाई और मुस्लिम हिंदू मंदिरों को संभाल पाएंगे?" कानून का बचाव करते हुए केंद्रीय मंत्री और भाजपा की सहयोगी जेडीयू के नेता राजीव रंजन सिंह ने कहा कि वक्फ बोर्ड के कामकाज को पारदर्शी बनाने के लिए यह विधेयक लाया गया है। विपक्ष के इस आरोप का जवाब देते हुए कि विधेयक अल्पसंख्यकों के खिलाफ है, उन्होंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों का जिक्र किया। उन्होंने पूछा, "हजारों सिखों को किसने मारा?" एनसीपी के शरद पवार गुट की सुप्रिया सुले ने कहा कि सरकार ने विधेयक को सदन में लाने से पहले विस्तृत परामर्श नहीं किया। उन्होंने पूछा, "कृपया इसे बेहतर परामर्श के लिए स्थायी समिति को भेजें। समय चिंता का विषय है। वक्फ बोर्ड में अचानक ऐसा क्या हो गया कि आपको विधेयक लाना पड़ रहा है।" इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के ईटी मोहम्मद बशीर और सीपीएम के के राधाकृष्णन ने भी विधेयक का विरोध किया।
वक्फ विधेयक संशोधन को लेकर चल रही बहस भारत में विपक्ष और सरकार के बीच गहरी चिंताओं और अविश्वास को दर्शाती है। जबकि सरकार का दावा है कि यह विधेयक एक आवश्यक सुधार है, विपक्ष इसे संवैधानिक सिद्धांतों और मुस्लिम अधिकारों पर हमला मानता है। इस विवाद के परिणाम का भारत में सरकार और अल्पसंख्यक समुदायों के बीच संबंधों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।