विश्लेषकों का कहना है कि ऐसा होने की संभावना नहीं है। भारत के पास इस समय पाकिस्तान के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिए कोई खास प्रेरणा नहीं है। नरेंद्र मोदी ने 9 जून को लगातार तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बनने की शपथ ली। अपने पिछले कार्यकालों में मोदी ने पाकिस्तान के प्रति सख्त रुख बनाए रखा है और इस बार भी उनके रुख में बदलाव आने की संभावना नहीं है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी भारत की नीतियों की आलोचना करते रहे हैं, जिससे दोनों देशों के बीच संबंधों में और तनाव आया है। मोदी सरकार अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे घरेलू मुद्दों पर केंद्रित रही है और उसने पाकिस्तान के साथ संबंधों को बेहतर बनाने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई है। इसके अलावा, पाकिस्तान का राजनीतिक परिदृश्य बदल गया है, इमरान खान की सरकार चुनौतियों का सामना कर रही है और देश की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल में है। हालांकि कुछ विश्लेषकों का सुझाव है कि मोदी क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक सहयोग को बेहतर बनाने के लिए पाकिस्तान के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन इस बात की संभावना नहीं है कि वे अपने तीसरे कार्यकाल में पाकिस्तान के प्रति कोई महत्वपूर्ण पहल करेंगे। इसके बजाय, वह संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ जैसे अन्य क्षेत्रीय भागीदारों के साथ संबंधों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
मुख्य बिंदु:
भारत के पास इस समय पाकिस्तान के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिए बहुत कम प्रोत्साहन है।
मोदी ने अपने पिछले कार्यकालों में पाकिस्तान के प्रति सख्त रुख बनाए रखा है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भारत की नीतियों की आलोचना करते रहे हैं, जिससे संबंधों में और तनाव आया है।
मोदी की सरकार घरेलू मुद्दों, जैसे अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
पाकिस्तान का राजनीतिक परिदृश्य बदल गया है, इमरान खान की सरकार चुनौतियों का सामना कर रही है और देश की अर्थव्यवस्था अनिश्चित स्थिति में है।
मोदी संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ जैसे अन्य क्षेत्रीय भागीदारों के साथ संबंधों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
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