धुलेंडी, जिसे रंगवाली होली के नाम से भी जाना जाता है, होलिका दहन के अगले दिन मनाई जाती है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत और रंगों से खेलने की खुशी का प्रतीक है। धुलेंडी पूजा में होलिका की परिक्रमा, गुलाल और जल चढ़ाना और हनुमानजी की पूजा शामिल है।
धुलेंडी क्यों मनाई जाती है?
पुराणों के अनुसार:
एक किंवदंती के अनुसार, भगवान शिव ने कामदेव को उनकी तपस्या में विघ्न डालने के कारण भस्म कर दिया था, लेकिन देवी रति की प्रार्थना पर कामदेव का पुनर्जन्म हुआ और उन्हें भगवान कृष्ण के पुत्र के रूप में जन्म लेने का आशीर्वाद मिला।
एक अन्य किंवदंती के अनुसार, राक्षस राजा हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को अपने बेटे प्रह्लाद को आग में ले जाने का आदेश दिया, लेकिन प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई।
बुराई पर अच्छाई की जीत:
धुलेंडी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, जिसे होलिका दहन के माध्यम से दर्शाया जाता है।
रंगों का त्योहार:
धुलेंडी रंगों के साथ खेलने और जश्न मनाने का त्योहार है। सामाजिक एकता: यह त्यौहार सामाजिक बंधनों को तोड़ता है और लोगों को एक साथ लाता है। धुलेंडी पूजा कैसे करें? होलिका दहन: लकड़ियों और अन्य सामग्रियों का उपयोग करके होलिका दहन के लिए एक स्थान तैयार करें। परिक्रमा: परिवार के साथ होलिका की तीन बार परिक्रमा करें। सामग्री अर्पित करें: होलिका की अग्नि में गेहूं, चने की बाली, जौ, गोबर के उपले आदि डालें। गुलाल और जल अर्पित करें: होलिका की अग्नि में गुलाल और जल अर्पित करें। हनुमानजी की पूजा: होलिका दहन के दिन हनुमानजी की पूजा का भी महत्व बताया गया है। माता-पिता से आशीर्वाद लें: होलिका दहन के बाद माता-पिता से आशीर्वाद लें।
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