राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में संसद के दोनों सदनों के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए भारतीय संविधान में आपातकाल की अवधारणा पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सरकार के पास आपातकाल की स्थिति घोषित करने का अधिकार है, जिससे संविधान के अनुच्छेद 19 में निहित मौलिक अधिकारों का निलंबन हो सकता है।
आपातकाल: संविधान का एक काला अध्याय
राष्ट्रपति ने आपातकाल को संविधान का एक "काला अध्याय" बताते हुए कहा कि यह एक ऐसा प्रावधान है जो सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए असाधारण उपाय करने की अनुमति देता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस अवधि के दौरान सरकार की शक्तियाँ असीमित होती हैं, जबकि नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित होते हैं।
सरकार का रोडमैप
अपने संबोधन में राष्ट्रपति मुर्मू ने अगले पाँच वर्षों के लिए सरकार के रोडमैप की रूपरेखा भी बताई। उन्होंने विभिन्न योजनाओं और पहलों के सफल कार्यान्वयन सहित सरकार की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। राष्ट्रपति ने देश के सामने आने वाली चुनौतियों जैसे कि मुद्रास्फीति, बेरोजगारी और आय असमानता पर भी बात की।
विपक्ष की आलोचना
हालाँकि, विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति के अभिभाषण की आलोचना की और इसे मोदी सरकार के लिए "प्रचार" और "विज्ञापन" करार दिया। उन्होंने तर्क दिया कि राष्ट्रपति देश के सामने आने वाले वास्तविक मुद्दों, जैसे आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतें, किसानों की आत्महत्या और नौकरियों की कमी को संबोधित करने में विफल रहे।
निष्कर्ष
निष्कर्ष में, राष्ट्रपति मुर्मू के अभिभाषण ने भारतीय संविधान में आपातकाल की अवधारणा और अगले पाँच वर्षों के लिए सरकार के रोडमैप पर प्रकाश डाला। जहाँ विपक्षी दलों ने अभिभाषण की आलोचना की, वहीं राष्ट्रपति के भाषण में सरकार की उपलब्धियों और देश के सामने आने वाली चुनौतियों पर ज़ोर दिया गया।
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