भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है, तथा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस पहले के फैसले को पलट दिया है, जिसमें अधिनियम को असंवैधानिक तथा धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला घोषित किया गया था। यह अधिनियम उत्तर प्रदेश में मदरसों के कामकाज को नियंत्रित करता है, तथा उनकी शिक्षा और प्रमाणन के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है।
**पृष्ठभूमि**
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मार्च 2024 में अधिनियम को धर्मनिरपेक्षता तथा समानता के सिद्धांत के कथित उल्लंघन का हवाला देते हुए रद्द कर दिया था। उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को मदरसा छात्रों को औपचारिक स्कूली शिक्षा प्रणाली में समायोजित करने का आदेश दिया था। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रैल 2024 में उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी, तथा मदरसा बोर्ड को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के लंबित रहने तक काम करना जारी रखने की अनुमति दे दी।
**सुप्रीम कोर्ट का फैसला**
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने 5 नवंबर, 2024 को फैसला सुनाया। कोर्ट ने माना कि मदरसा अधिनियम संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है या अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन नहीं करता है। जजों ने इस बात पर जोर दिया कि राज्य का अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने का सकारात्मक दायित्व है, साथ ही यह सुनिश्चित करना भी है कि शैक्षणिक मानकों को बनाए रखा जाए।
**मुख्य निष्कर्ष**
1. **संवैधानिक वैधता**: सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा अधिनियम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इस निष्कर्ष को खारिज कर दिया कि यह असंवैधानिक है।
2. **धर्मनिरपेक्षता**: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब अल्पसंख्यकों के अधिकारों का दमन या धार्मिक शिक्षा पर रोक नहीं है। बल्कि, इसका मतलब है "जियो और जीने दो", जो विभिन्न शैक्षणिक प्रणालियों के सह-अस्तित्व की अनुमति देता है।
3. **विधायी क्षमता**: सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा अधिनियम को लागू करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की विधायी क्षमता की पुष्टि की, जो शिक्षा प्रणाली के धर्मनिरपेक्ष ढांचे का उल्लंघन किए बिना मदरसों में शैक्षिक मानकों को विनियमित करता है।
4. **यूजीसी अधिनियम के साथ टकराव**: न्यायालय ने मदरसा अधिनियम के उन विशिष्ट प्रावधानों की पहचान की जो डिग्री प्रदान करने से संबंधित विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) अधिनियम 1956 के साथ टकराव में थे। इन प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित किया गया।
5. **शिक्षा मानक**: न्यायालय ने मदरसों के लिए राष्ट्रीय मानकों का पालन करने की आवश्यकता पर जोर दिया, जो संविधान के अनुच्छेद 21ए के साथ संरेखित है, जो शिक्षा के अधिकार की गारंटी देता है।
**निहितार्थ**
1. **मदरसा शिक्षा की निरंतरता**: सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उत्तर प्रदेश में मदरसों को मदरसा बोर्ड द्वारा विनियमित, काम करना जारी रखने की अनुमति दी है।
2. **प्रमाणपत्रों की मान्यता**: हालांकि, मदरसों द्वारा जारी कक्षा 12वीं से आगे के प्रमाणपत्रों को यूपी मदरसा बोर्ड द्वारा मान्यता नहीं दी जाएगी।
3. **अल्पसंख्यक अधिकारों की सुरक्षा**: न्यायालय का निर्णय अल्पसंख्यक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, जिससे अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों और उनके विशिष्ट चरित्र को संरक्षित रखने की अनुमति मिलती है।
**निष्कर्ष**
मदरसा अधिनियम की संवैधानिक वैधता को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखा जाना उत्तर प्रदेश के 13,000 से अधिक मदरसों के लिए एक महत्वपूर्ण राहत है, जो अब अधिनियम द्वारा स्थापित नियामक ढांचे के तहत काम करना जारी रख सकते हैं। मदरसों द्वारा राष्ट्रीय मानकों का पालन करने की आवश्यकता पर न्यायालय का जोर और धर्मनिरपेक्षता पर उसका स्पष्टीकरण भारत में विभिन्न शैक्षिक प्रणालियों के सह-अस्तित्व को सुनिश्चित करने में मदद करेगा।
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